बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

पाप क्या है पुण्य क्या है ?

कौन सी राहें गलत हैं ,जो कि चलना छोड दूँ मै ,
तुम मुझे इतना बता दो पाप क्या है,पुण्य क्या है !
*
दो चरण की एक गति है ,एक मति है, एक पथ है !
अंत भी जिसका अजाना फिर कहो क्या पथ-कुपथ है?
एक स्वर की डोर जिसको खींचती रहती सदा ही ,
उस पथिक के चल पगों को कौन-सा बन्धन सुखद है?
कौन जाने किस जगह से और कितनी दूर जाना ,
इस लिये इतना बता दो आदि क्या है ,अंत क्या है ?
*
जब तिमिर की गोद मे आलोक पलकें मूँद सोता ,
नींद मे मन किसी कल्पित वास्तव का भ्रम सँजोता ,
अतिक्रमण कर काल का जब स्वप्न तिरते हों नयन मे,
उस मनोगति पर कहीं का बाह्य अनुशासन न होता?
एक दिन भर का उजेला ,रात भर की कालिमा भी,
तुम मुझे इतना बता दो ,सत्य क्या है स्वप्न क्या है?
*
एक क्रम सब ओर देखा पर लगा सब-कुछ नया है,
आँख को आभास था जो आ गया वह फिर गया है!
सप्तरंगी घोल कर रँग कल्यना की तूलिका से,
चित्र कल ही तो बनाया आज लेकिन मिट गया है?
एक क्षण मे पा लिया जो .,खो गया वह दूसरे क्षण,
तुम मुझे इतना बता दो जिन्दगी को मर्म क्या है?
*

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