बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

कौन आएगा ?

हथेली पर धर कर अंगार ,
चीरने को अथाह अँधियार-
कौन आएगा मेरे साथ ?
*
उमड़ती नेताओं की भीड ,जोंक से फूले हुए शरीर ,
भरी है भूख अगाध !
घृणा का कर बेरोक प्रचार ,
राष्ट्र हित को चूल्हे मे झोंक ,
कहाते कर्णाधार !
भ्रष्ट ,कपटी ये रँगे सियार
 बने हैं जन-जन के संताप ,
भेडिये ये खूँख्वार !
*
और ये सौदेबाज़ !
विवशता भूख-प्यास को तोल ,
बेचते रोग व्याधि औ ताप !
मिलावट और काला बाज़ार !
न कोई सोच ,न ग्लानि ,न क्षोभ !
इन्ही की है करतूत - अंध औ बधिर शरीर ,
लुंज तन और मुड़े सब अंग ,
कान , सुन करुण विलाप ,
पा रहे तृप्ति अपार !
बिकी आत्मा , बिक चुका विवेक ,
कहाँ इनके कलुषों की थाह ?
*
धर्म के बनते जो अवतार ,
नाम छपने को देते दान ,
भरा अंतर मे पाप ,
होंठ पर हरि का नाम !
दिखाने को भगवान
किन्तु मंदिर पर इनका नाम !
चढ़ावा औ प्रसाद उत्कोच ,
ईश्वर पर एहसान ,
कुण्डली मार पड़े चुपचाप
 समेटे धन को काले नाग !
*
स्वयं को बता प्रबुद्ध ,
होंठ सीकर बन बैठे मूक ,
धरे हाथों पर हाथ !
निगल जाते मक्खियाँ ,
मूँद आँखें , धर मौन यही धृतराष्ट्र !
तर्क के फैला जाल,
मंच भर वाद-विवाद ,ग्रंथ-भर ऊहापोह ,
बुद्धि पर बलात्कार !
*
अरे , ये बड़े धुरंधर लोग ,
उठा लेते सिर पर आकाश !
चतुर्दिक आग ,अश्रु और चीख ,
यहाँ दिग्भ्रमित समाज ,
किन्तु ये ऊँचे लोग ,
किनारे हो चुपचाप ,
उगल देते दार्शनिक विचार !
सत्य कैंची से काट ,
कलम से तोड़-मरोड़ ,
मिलाकर नमक -मिर्च रोमांच ,
बना लेते स्कूप ,
 पृष्ठ काले कर भर अख़बार ,
नई पीढी को पिला अफ़ीम ,
किया करते गुमराह !
कहाँ प्रारंभ कहाँ है अंत , रा है पारावार !
*
सुनोगे क्या पथ -बन्धु ,
तुम्हें इतना अवकाश ?
कौन आएगा मेरे साथ-
 डूबकर लेने थाह ?
सहन करने केवल उत्ताप ,
सिर्फ़ बदनामी औ उपहास
समझ कर अपना प्राप्य ,
कौन विष पीने को तैयार ,
हथेली पर धर ले अंगार ?
*
खोलने पाखंडों की पोल ,
छिपा कर रक्खे जो कंकाल
बंद कमरों से उन्हे निकाल ,
दिखाने असली रूप !
खोजने तथ्य ,बाँचने सत्य ,
तोड़ने भ्रम के जाल !
*
विषम जीवन के सिर धर शाप ,
और उपहास ,व्यंग्य अपमान - यही पाथेय !
सदाशिव सा अविकार ,गरल पी निस्पृह ,शान्त ,
कौन आएगा मेरे साथ ?
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