रविवार, 28 फ़रवरी 2010

प्रश्न

जब अपने से छोटे
और उनसे भी छोटे
रुख़सत हो
निकलते चले जाते हैं सामने से
एक-एक कर ,
अपना जीवन अपराध लगता है .
*
जब वंचित रह जाते हैं लोग,
उस सबसे जो हमने पाया ,
तरसते देख गुनाह लगती हैं
अपनी सुख-सुविधायें कि दूसरे का हिस्सा
हम अब भी दबाये बैठे हैं .
अपनी सारी क्षमताये बेकार
कि अब कौन सी सार्थकता बाकी रह गई ?
*
भाग्यशाली हैं वे ,
जो जीवन-मृत्यु को
सही सम्मान दे ,
समय से प्रस्थान कर जाते हैं .
*

कितना सुन्दर

कितना सुन्दर है ये जीवन ,मेरे मन !
*
घूम के आतीं जो ऋतुओं के साये
पत्ते उड़ाती भागती हवाये ,
कभी बरसात कभी धूप की तपन
*
घेरे हुये घरती गगन की बाहें .
चूमती पग-पग बढ़ती हुई राहें
साथ में चले जो कोई हो मगन !
*
कहीं कंकरों के दाँव पाँवों तले
नर्म माटी की छुअन भी मिले
कभी हँसी खिले कभी मिले यहां गम !
*
चला आता हँसता त्यौहार का मौसम .
पतझर आया आयगा बहार का मौसम
*