बुधवार, 21 अक्टूबर 2009

पुत्र-वधू से

द्वार खडा हरसिंगार
फूल बरसाता है तुम्हारे स्वागत मे ,
पधारो प्रिय पुत्र- वधू !
*
ममता की भेंट लिए खडी हूँ कब से ,
सुनने को तुम्हारे मृदु पगों की रुनझुन !
सुहाग रचे चरण तुम्हारे , ओ कुल- लक्ष्मी ,
आएँगे चह देहरी पार कर सदा निवास करने यहाँ ,
श्री-सुख-समृद्धि बिखेरते हुए !
*
जो मै थी , तुम हो ,
जो कुछ मेरा है तुम्हे अर्पित !
ग्रहण करो आँचल पसार कर ,प्रिय वधू ,
समय के झंझावातों से बचा लाई हूं जो ,
अपने आँचल की ओट दे ,
सौंपती हूँ तुम्हे -
उजाले की परंपरा !
*
ले जाना है तुम्हे
और उज्ज्वल ,और प्रखर ,और ज्योतिर्मय बनाकर
कि बाट जोहती हैं अगली पीढियाँ !
मेरी प्रिय वधू ,आओ
तुम्हारे सिन्दूर की छाया से
अपना चह संसार और अनुरागमय हो उठे !
*

2 टिप्‍पणियां:

  1. पुत्र बधू कुलबधू हमारे,

    दूर रहो या पास |

    मन में रहना बिटिया बनकर ,

    सदा हमारे साथ |

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  2. bahut bahut sunder swaagat putr-vadhu ka....upar se sone pe suhaga ye Dr Gupt ji ki 4 panktiyaan....is tarah se koi apnayega to putr vadhu putri hi hokar reh jayegi.....

    agar aapne waqayi mein kisi ke liye ye panktiyan likhin hongi...to main soch sakti hoon..unke chehre par kitni nishchint aur chittakarshak muskaan khil uthi hogi......

    bhavishya mein aavashyakta hui to ye shabd aapse udhar loongi.....:)

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