बुधवार, 28 अक्टूबर 2009

हिमालय ने बुलाया है

हिमालय ने बुलाया है जवानी को निमंत्रण दे ,
हमारे देश पर फिर दुष्मनो ने आँख डाली है !
किसी के हाथ में हँसिया ,किसी के हाथ में हल है ,
किसी के लौह हाथों में बहुत सजती दुनाली है !
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कि हमने तो यहाँ पर दोस्ती के ख्वाब देखे थे ,
मगर उनने हमारे शान्त हिमगिरि को जगाया है !
सुनो आवाज देती हैं हमारे देश की नदियाँ ,
जननि के दूध की धारें ,जिन्होंने पय पिलाया है !
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बढो,ओ रे ,जवानी के महकते से नये फूलों ,
इरादा दुष्मनों का है उन्हें नापाक करने का !
कि अब इतिहास दुनिया का हमेशा याद रक्खेगा ,
जमाना है नहीं अब तो कहीं विश्वास करने का !
सुनो आवाज गंगा की ,सुनो आवाज यमुना की ,
अरे कृष्णा औ'कावेरी तुम्हारी अब जरूरत है !
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अरी गोदावरी ,धीरे न बह ,तट को जगा दे तू
,बता दे और इनको अब ,विजय का ये मुहूरत है !
हिमालय ने निंमंत्रण दे दिया विंध्या ,अरावलि को ,
कि ओ रे नीलगिरि ,तू उठ खडा हो ,शंख -ध्वनि घहरा !
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हमारा देश ,अपनी भूमि ,नदियाँ और अपने वन ,
धरा के पुत्र जागो ,और दो चिर जाग कर पहरा !
हिमालय ने बुलाया है !
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