शनिवार, 26 दिसंबर 2009

नव वर्ष हेतु शुभ-कामनाएँ

नये वर्ष की ,कुछ नई कामनायें
हमारी तरफ़ से नज़र हैं तुम्हारी ,
सभी शुभ-वचन हों फलीभूत ,
सब में नया राग आनन्द पूरित जगायें ,
मधुर प्रीत-पूरित पुलकता सँदेशा
तुम्हारे लिये हर नई भोर लाये .
*
नवोत्साह पूरित नवाशा लिये
एक विश्वास नूतन सदा सँग रहे
फिर नयी स्वर-किरण यों उजाला भरे
औ' पुरानी उदासी किसी पर न छाये ,
नये स्वर्ण-युग का शुभारंभ देखे ,
सुमति -शान्ति भर प्रिय-धरा ये हमारी !
*

मातृ-भू की सुरक्षा में रत वीरव्रती फ़ौज़ी बन्धुओं को

उतारें नयन आरती ये तुम्हारी .
तुम्हीं ,जो ,वतन के लिये डट गये थे ,
सभी मोहमाया यहीं रख गये थे.
पुकारा जभी मातृ-भू ने तुम्हें ,
ख़ुद महाकाल बन जूझने चल दिये थे
तुम्हरी कुशलता मनाऊँ हरेक पल ,
गगन भर सितारे निछावर तुम्हारी !
*

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

मन-दर्पन

सच कहा कि साँस लिये जाती खींचे जीवन .

मन का विस्तृत आकाश
कभी छा लेता घिर बदला मौसम .

बादल-बूँदें छाया कुहास ,
आँधियाँ ,हवायें धूल भरी ,

ये सब आने-जाने वाले ,

फिर थिर हो उजला व्यापक मन.

विस्तृताकाश बन महानील

ढँक लेता भाव-अभाव ,चुभन ,

सीमित सहने की शक्ति बंधु,

है क्षम्य यहाँ क्षण की विचलन !

*

बिजलियां चमक लें

गरज-तरज बरसें बादल ,

छिप जायें सूरज-चाँद-सितारे-दिशा बोध ,

उच्छ्वसित पवन का वेग ,सजल आवेग

कहाँ तक ठहरेगा .

भरमा ले थोड़ी देर ,

हटा कर संयम के अवरोध,

प्रकृति कर ले नियमन .

फिर स्वच्छ ,सुशान्त गगन सा

मन दर्पन-दर्पन !
*

शनिवार, 5 दिसंबर 2009

थकान

*
कभी ऐसा भी होता है
जब हाथ-पाँव ,
लगता है,
जैसे अपने बस में न रहे हों ,
चलना नहीं चाहते !
जवाब देने लगते हैं !
कहना पड़ता है उनसे -
जब मैं जीवित हूँ ,
तुम क्यों मरे जा रहे हो !
*

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

विश्वविद्यालय का बेचारा भुक्त-भोगी शिक्षक

विश्वविद्यालय का बेचारा भुक्त-भोगी शिक्षक -
*
मंजु ने आवाज़ दी ,'अरे, डॉ.राय
पिछले साल आपने वाक्आउट दिया कराय
कहा कि पेपर जा रहा आउट ऑफ़ द कोर्स
एकदम है ये बेतुका लड़कों को कर फ़ोर्स ।'
*
चलते-चलते रुक गये एकदम .डॉ राय
'हम क्यों जुम्मेदार हैं ,हमने दी थी राय !
लड़कों ने हल्ला किया हमने समझी बात ,
वहाँ बेतुके प्रश्न थे ,कुछ बिल्कुल बकवास ।'
*
'तब फिर तो इस बार वे होंगे परम संतुष्ट ,
पेपर था ही आपका ,सिद्ध हो गया इष्ट .'
'तो वह भी सुन लीजिये वह भी किस्सा एक .
डॉ.मंजु, खुश हुये हम लड़कों को देख
*
पूछा क्यों कैसा रहा पेपर अबकी बार ?'
'कौन हरामी था किया सेट पेपर इस बार '?
दूजा बोला 'परीक्षक साला खाकर भग
सारे कोश्चन चर गया,जो चेप्टर के संग
*
भाषा थी बदली हुई ,समझ आय क्या खॉक,
गधा नलायक दे गया हम लोगों को शॉक .'
उठा ठहाका एक फिर, मानी हमने हार
इस पीढ़ी का किस तरह हो पाये उद्धार !
*
 प्रतिभा सक्सेना