गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

चिनार के पत्ते

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उड़ आए तूफ़ानी हवाओं के साथ ,
चिनार के ये पत्ते !
बर्फ़ की सफ़ेद चादर पर जगह -जगह
ख़ून के धब्बे!
उसी लहू के कुछ छींटे, कुछ लिख गए हैं इन पर भी !
मोती-जड़ी नीलम - घाटी मे उगे थे कभी
बारूदी धुएँ से झुलसे ,उड़ रहे हैं सब तरफ़
उन्ही चिनारों के पते !
ऋतुएँ बदलेंगी ,बर्फ़ पिघलेगी ,
पर यह ख़ून कभी नहीं पिघलेगा ,
युवा हृदय की तमाम हसरतें , जीवन के सतरंगी सपने सँजोये
यह ऐसा ही जमा रहेगा इस धरती पर!
जिनने सींचा है इस धरती को अपने गर्म लोहू से ,
कि आश्वस्त रहें हम सब !
उनके नाम लिख दो इस धरती पर ,
यही सँदेशा लाये हैं ये चिनार के पत्ते!
*
अब बारी तुम्हारी है
कि लहू के ये धब्बे ,
लाल फूल बन सुवास भर दें साँसों में
जब लौट कर वे आयें यहाँ !
इस धरती पर बिखरे उनके सपने साकार हो सकें ,
जिम्मेदारी अब तुम्हारी है -
कह रहे हैं ये चिनार के पत्ते !
सिर से छुआ लो ,हृदय से लगा लो -
इनने देखा है वह जिसे सुनकर दुख भी पथरा जाये!
यही एहसास जगाने आये हैं ये चिनार के पत्ते!
उड़ आये तूफ़ानी हवाओं के साथ ,
ये चिनार के पत्ते !
*

1 टिप्पणी:

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