गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

चरैवेति'

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यह संस्कृति का वट-वृक्ष पुरातन-चिरनूतन
कह 'चरैवेति' जो सतत खोजता नए सत्य
जड़ का विस्तार सुदूर माटियों को जोड़े
निर्मल ,एकात्म चेतना का जीवन्त उत्स,
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आधार बहुत दृढ़ है कि इसी की शाखाएँ
मिट्टी में रुप कर स्वयं मूल बनती जातीं,
जिसकी छाया में आर्त मनुजता शीतल हो
चिन्ताधारा में नूतन स्वस्ति जगी पाती
*
इस ग्रहणशीलता पर संशय न उठे कोई
हर फल में रूप धरे संभावित वृक्ष बीज
वन-सागर पर्वत सहित कुटुंब धरा का हो,
मानवता का आवास द्वीप औ' महाद्वीप !

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

कबाड़खाना

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हर घर में
कुछ कुठरियाँ या कोने होते हैं
जहाँ फ़ालतू कबाड़ इकट्ठा रहता है ।
मेरे मस्तिष्क के कुछ कोनो में भी
ऐसा ही अँगड़-खंगड़ भरा है ।
जब भी कुछ खोजने चलती हूँ
तमाम फ़ालतू चीज़ें सामने आ जाती हैं ,
उन्हीं को बार-बार ,
देखने परखने में लीन
भूल जाती हूँ
कि क्या ढूँढने आई थी!
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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

केलिफ़ोर्निया का राज-पुष्प

वन घासों के बीच
झिलमिलाते इतने दीप !
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इस निर्जन वन-खंडिका में
संध्याकाश के नीचे
कौन धर गया ?
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क्रीक के दोनों ओर ,
ढालों पर, निचाइयों में
और हरी-भरी ऊँचाइयों पर भी .
सघन श्यामलता में दीप्त होते
चंचल हवा से अठखेलियाँ करते
कितने -कितने दीप !
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सुनहरी लौ के प्रतिबिंब
तल की जल-धारा में बहते उतराते
सीढ़ियों पर बिखर-बिखर
लहरों के साथ बहते चले जा रहे
इस विजन में फूले हैं अनगिनती
सुनहरे पॉपी ,
उजास बिखेरते इस एकान्त साँझ में !
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