स्वर-यात्रा
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शनिवार, 5 दिसंबर 2009
थकान
*
कभी ऐसा भी होता है
जब हाथ-पाँव ,
लगता है,
जैसे अपने बस में न रहे हों ,
चलना नहीं चाहते !
जवाब देने लगते हैं !
कहना पड़ता है उनसे -
जब मैं जीवित हूँ ,
तुम क्यों मरे जा रहे हो !
*
1 टिप्पणी:
बेनामी
7 दिसंबर 2009 को 6:28 am बजे
बहुत खूब।
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