tag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.comments2023-03-31T05:00:55.865-07:00स्वर-यात्राप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger46125tag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-23755058565172469072014-03-02T07:05:07.062-08:002014-03-02T07:05:07.062-08:00प्रभावपूर्णप्रभावपूर्णममता त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/11493596033041375660noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-74283463560461852762013-04-12T09:36:28.897-07:002013-04-12T09:36:28.897-07:00बहुत सुन्दर प्रतिभा जी | लाजवाब भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत सुन्दर प्रतिभा जी | लाजवाब भावपूर्ण प्रस्तुति | <br /><br />कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें | <br /><a href="http://www.tamasha-e-zindagi.blogspot.in" rel="nofollow">Tamasha-E-Zindagi</a><br /><a href="http://www.facebook.com/tamashaezindagi" rel="nofollow">Tamashaezindagi FB Page</a>Tamasha-E-Zindagihttps://www.blogger.com/profile/01844600687875877913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-51318856283833347902012-12-14T04:52:39.817-08:002012-12-14T04:52:39.817-08:00Ek itar sonch...
Toofan aayega to
doobenge ya utre...Ek itar sonch...<br />Toofan aayega to<br />doobenge ya utrenge paar...<br />Abhi to vartaman ke laharon pe <br />athkheliyan karne do...<br />Dayanand Aryahttps://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-13653025355927159222011-01-28T01:24:29.514-08:002011-01-28T01:24:29.514-08:00जी....वो पता कर लिया इस कविता का भावार्थ...अविनाश ...जी....वो पता कर लिया इस कविता का भावार्थ...अविनाश ने सहायता कर दी...:( बहुत सीधा सरल था ..मैं ही ज़्यादा दिमाग लगा कर कोई गहरा अर्थ निकलने की चेष्टा कर रही थी शायद इसलिए कुछ समझ ही नहीं आया था।मुआफी चाहूंगी।<br /><br /><br />ये हमेशा की समस्या रही है...इम्तहानों में तक मैंने ऐसा बहुत किया है..ज़्यादा दिमाग लगा कर...सही लिखे हुए को गलत कर देना।<br />हम्म..वैसे सबक मिल गया.....अब जब ढूँढने के बाद भी कुछ समझ नहीं आएगा..तो उसे सीधे सीधे समझने का जतन किया करुँगी...:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-36297412818038134722011-01-26T23:56:04.496-08:002011-01-26T23:56:04.496-08:00शैशव की लीलाओँ में
वात्सल्य भरे नयनों की छाँह तले...शैशव की लीलाओँ में <br />वात्सल्य भरे नयनों की छाँह तले ,<br />सबसे घिरे तुम ,<br />दूर खड़ी देखती रहूँगी .<br />यौवन की उद्दाम तरंगों में ,<br />लोकलाज परे हटा ,आकंठ डूबते रस-फुहारों में <br />जन-जन को डुबोते ,<br />दर्शक रहूँगी ,<br /><br />वाह! कित्ता प्यारा छंद है..कितना पावन निवेदन..समीप रहने की उत्कंठा ...पर स्पर्श की चाह नहीं..।<br /><br />बन-तुलसी की गंध से व्याप्त<br />अरण्य-प्रान्तर में वृक्ष तले ,<br />ओ सूत्रधार ,तुम चुपचाप अकेले <br />अधलेटे अपनी लीला का संवरण करने को उद्यत,<br /><br />एकदम दृश्य घूम गया..क्षीर सागर में आधे लेटे..आंखें मूंदे हुए विष्णु जी और माँ लक्ष्मी का। <br /><br />उन्ही क्षणों में तुम्हारे मन से<br />जुड़ना चाहती हूँ <br />तुम्हारे साथ होना चाहती हूँ <br /><br />ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं मैंने..इस समय आराध्य को पाना ...बहुत अच्छा भाव लगा प्रतिभा जी...मुझे तो वृन्दावन में ही असीम शांति अनुभव हुई.....जबकि वहां लीलाओं की हलचल है...हर जड़ वहां गतिमान है......और हर चेतना उस जड़ता का वेग पाने के लिए आतुर। <br />magar आपकी ये वाली भावना मेरे लिए एकदम नयी thi।<br /><br /><br />इस सीमित में उस विराट् को <br />अनुभव करना चाहती हूँ.<br /><br />अपने होंठों पर गिरह बांधकर अपने मन में गहरे डूब जाना...फिर अपने आप में इस तरह खुलना कि..संसार और हमारे बीच कृष्ण आ खड़े हो जाएँ। सीमित में विराट का अनुभव...तभी हो सकता होगा...जब स्थूल छोड़ हम सूक्ष्म शरीर कि चेतना पा जाएँ।<br /><br />कि सारी वृत्तियों पर छाये <br />इस सर्वग्रासी राग को,<br /><br />शायद इस stanza में लिखा हुआ अनुभव ही ''परमहंस'' mehsoos करते होंगे...जो संसार से तटस्थ होकर श्रीकृष्ण के समीप पहुँच जाया करते हैं।<br /><br />वही अनुभूति ग्रहण कर <br />मन एक रूप हो जाए. <br />कि यह भी अपरंपार हो जाए . <br />व्याप्त हो जाए हर छुअन में, दुखन में,<br /><br />'मीरा चरित' में एक जगह वृन्दावन की ओर बढ़ते हुए मीरा के तलवों में छाले पड़ जातें हैं....मगर उन्हें इनका भान नहीं...कोई पीड़ा नहीं....अपितु कहती हैं अपनी सखी स्वरुप दासियों से....की ''धन्य हैं ये मांस पिंड...जो श्रीकृष्ण के लिए समर्पित हुए हैं ...'' । <br /><br />कहाँ ऐसा सौभाग्य की हम भी ये अनुभव पा जाएँ.....हर सुख में तो एक तरह से हो भी सकता है..मगर दुःख में भी आभार का भाव आ जाये और सुख पाने की चेष्टा न रहे..तो कहने ही क्या फिर।<br /><br /><br />जो चलती बेला छा रही हो तुम्हें !<br />और फिर अनासक्त , <br />डुबो दूँ अथाह जल में,<br />अपनी यह रीती गागर <br /><br />यहाँ फिर :( समझने में दिक्क़त है प्रतिभा जी....अनासक्ति तो समझ आ गयी....सारी मनोवृत्तियाँ तो कृष्ण को अर्पित कर ही दीं हैं...ओह्ह्ह ! शायद रीति गागर से तात्पर्य रीता हुआ मन है....शायद देह भी हो सकती है.......दोनों ही तरह से समझा जाए तो दोनों ही अर्थ दोनों ही समापन बहुत achhe lage...........रीता मन कृष्ण के भक्ति जल में डुबो कर...जग में रहकर भी जग से दूर होकर कृष्ण के हो जाना...........और रीति देह के अवसान के बाद.....आत्मा की मुक्ति....मोक्ष की प्राप्ति।<br /><br />प्रतिभा जी.....मैंने एक किताब पढ़ी थी ''ब्रज के भक्त'' उसमे एक माता जी का वर्णन है...जिनके एक अनुयायी (दिलीप राय जी) बहुत अच्छा गाते थे....वे माता (इनका नाम मेरी मूर्ख बुद्धि स्मरण नहीं कर पा रही..) अपने अनुभव में लिखतीं हैं...,''कि एक बार जब वे उनके सम्मुख गा रहे थे..तो माता ने श्री कृष्ण को साक्षात् दिलीप जी के सामने पाया''........क्या पता ऐसा ही कवियों के साथ भी होता हो.....:) कौन जाने..इस तरह कि कविताओं को लिखते समय आपको भी भगवानजी का आशीर्वाद मिला होगा..।?<br /><br />khair..<br />''परम सौभाग्य मेरा..इस कविता को इतने अच्छे से पढ़ने का ..गुनने का मुझे मौका मिला...''।<br />आपकी अनदेखी aagya अनसुनी सहमति से इसे ले जा रहीं हूँ.....एकाकी क्षणों में कभी ये मुझे संबल देगी।<br /><br />shukriya .. shabd is kavita ke liye chhota pad raha hai... jo keh nahin pa rahin hoon....ummeed hai..aap samajh jayengi...<br /><br />pranaam !Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-89826598267109964462011-01-26T21:31:45.942-08:002011-01-26T21:31:45.942-08:00हम्म...!!
जी...शुक्रिया.....मुझे तो आशा ही नहीं थी...हम्म...!!<br />जी...शुक्रिया.....मुझे तो आशा ही नहीं थी आप समय निकाल पाएंगी..:)<br />बिना आपके बतलाये ये समझ नहीं आता...हालाँकि कच्चा पक्का अर्थ तो मैंने खुद ही निकाल लिया था....मगर वो लज्ज़त कहाँ थी लफ़्ज़ों में...जो अबकी बार पढने में आई..और वो संतुष्टि..जो ''समझ लेने'' के बाद आती है..और हम आराम से दूसरी कविता के पायदान पर ज़ेहन का कदम रख सकते हैं..।<br /><br />बहरहाल,<br />सार्थक मेरे शब्द थोड़े हैं..सार्थक आपका लेखन है....जिसकी वजह से मैं समय का सदुपयोग कर रही हूँ और...आपने इतना कह दिया...मेरी उपस्थिति को आपकी दृष्टि मिल गयी...काफी है।<br /><br />बहुत आभार है अविनाश का....जिसने आपका पता diya...अन्यथा यूँ ब्लॉग पर जाना नहीं होता मेरा...बस कुछ चुनिंदा मित्रों के blogs के अलावा..।<br />चलिए मैं कुछ पढ़ लूं आपका लिखा हुआ ।Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-9975161995726650442011-01-26T16:29:45.035-08:002011-01-26T16:29:45.035-08:00तरु जी ,
आप इतने मनोयोग से कविताओं को हृदयंगम कर र...तरु जी ,<br />आप इतने मनोयोग से कविताओं को हृदयंगम कर रही हैं ,मुझे अपना लेखन सार्थक लगने लगा है .<br />बहत्तर कुंवारियां- उन लोगों पर लिखी गई है जिन्हें जन्नत के सुखों का लोभ दे कर आत्मघाती हमले के लिए तैयार किया जाता है.उनके स्वर्ग की धारणा में केवल भौतिक भोग है बहत्तर कुमारियों को अकेले भोगना ही(साथ में 150 गिलमा -सुन्दर किशोर लड़के -पहले मैं भी इसका आशय नहीं समझ पाई थी) उनके लिए सबसे बड़ा आकर्षण है -यौन सुख ही जीवन का चरम सुख है.<br />धर्म में निहित इस मानसिकता को उजागर करना मेरा उद्देश्य था .प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-30392354944745065422011-01-26T12:20:24.353-08:002011-01-26T12:20:24.353-08:00bahut din beete..maine kabhi aisaa socha tha likhn...bahut din beete..maine kabhi aisaa socha tha likhne k liye....kisi ke na hone per uskekisi apne ka jeewan kis tarah se prabhavit hoga.....<br /><br />achha hua nahin likhpaayi...aapki ye kavita to likhihui hi hai.......<br /><br />जिन्दगी तो हर तरह जीनी पड़ेगी <br />सब बहाती काल की धारा रहेगी <br />कौन कब कर ले न जाने कौन सा रुख <br />यही निर्भरता बहुत देगी कभी दुख ,<br />इन्हीं लहरों में विवश हो कर बहोगे !<br /><br />bahut achhi panktiyaan .......inme jeewan ka sambal bhi hai....aur ghor nirasha bhi....depends ki kisko kya nazar aata hai...:)<br /><br />bahut pasand aayi ye rachna....chaliye aaj isi ke sath shubhraatri..:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-42568600578946519892011-01-26T11:58:37.522-08:002011-01-26T11:58:37.522-08:00इस मेले की यह आवा-जाही जो दिखती है, हर संझा को खाल...इस मेले की यह आवा-जाही जो दिखती है, हर संझा को खाली हो जाता सूनसान ,<br />थक कर चुपचाप बैठ जाती तरु के तल में दिनभर की चलती थकी हुई यह घूम-घाम.<br /><br />बहुत अच्छे शब्द...''आवाजाही का पेड़ तले विश्राम हेतु बैठ जाना.....'' पहली बार एकदम समझ ही नहीं आया...fir samajh gayi..:)<br /><br />और.. <br /><br />''कहने को तो कुछ तो नहीं बचा चुपचाप चलें जब तक राहें मुड़ जाएँ अपनी कहीं और.''<br /><br />हम्म..सही कहतीं हैं आप....आजकल तो डर के साथ साथ अजनबियत इतनी बढ़ गयी है...कि ट्रेन में बैठा हर सहयात्री...राजनीति या क्रिकेट पर बहस करने कि बजाये...बाबा रामदेव के विभिन्न योग करना पसंद करता है...... <br />:)<br /><br />''इस पथ के जाने कितने ऐसे किस्से हैं ,संवाद वही ले पर पात्र बदलते बार बार ''<br /><br />ये बात आपके लिए और अन्य लेखकों के लिए भी कितनी सत्य हैं....जैसे मुझे बहुत सी भूली बिसरी बातें आपके शब्दों ने याद दिलायीं...कल कोई और होगा...उसका दूसरा अनुभव होगा.....आप वहीँ रहेंगी...आपके शब्द वही रहेंगे......ये शब्द भी जाने कितनी मनोदशाओं को मनोभावों को मूक दृष्टि से देखते हुए अपने आप में विलय कर लेंगे।<br /><br />आपकी 'कथा' पढ़कर अच्छा लगा...आपके संस्मरण बहुत अच्छे होंगे....लिखते होंगे आप तो मैं ढूंढकर पढूंगी.....नहीं लिखते तो निवेदन है...लिखियेगा प्रतिभा जी....:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-76336242353190289912011-01-26T11:30:50.600-08:002011-01-26T11:30:50.600-08:00प्यारी कविता....सरल शब्दों से सजी हुई...सहज ही ह्र...प्यारी कविता....सरल शब्दों से सजी हुई...सहज ही ह्रदय तक पहुँचती और उसे हल्का बनती हुई........:) <br /><br />''बहुत पहले बचपन में 'गृहशोभा' की एक कहानी में एक चित्र छपा था.....एक बड़ी सी बिंदी लगाये ..पारंपरिक साड़ी पहने ...सुहाग चिन्हों से सुसज्जित...ढीले बंधे हुए केश...अधरों पे मुस्कान रखे..बालकनी से बाहर देख रही एक स्त्री...और उसके एकदम पीछे चुपके से आ रही स्कूल ड्रेस में एक ३-४ साल की बच्ची की....''<br /><br />आपकी इस कविता ने वो दृश्य याद दिला दिया....जो मैं भूल चुकी थी लगभग।Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-46303156653847482632011-01-26T11:21:46.676-08:002011-01-26T11:21:46.676-08:00बहुत क्षमा चाहती हूँ....५-६ बार मन लगा कर कविता पढ...बहुत क्षमा चाहती हूँ....५-६ बार मन लगा कर कविता पढ़ी....मगर शायद मेरी बुद्धि उतनी सूक्ष्म नहीं......किसी मित्र से पूछूंगी अगर वो इस कविता का अंत मुझे समझा सके....ताकि इस कविता को पढ़ने के बाद ''न समझ पाने'' जैसी जो अनुभूति हो रही है वो समाप्त हो..और दुबारा मैं इसे पढ़ने का आनंद ले सकूं.....फिर भी नहीं संतुष्ट हुई तो प्रतिभा जी....आपसे ही अंतिम निवेदन करने फिर आउंगी।Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-71720874030737611762011-01-26T11:06:55.208-08:002011-01-26T11:06:55.208-08:00bahut bahut sunder swaagat putr-vadhu ka....upar s...bahut bahut sunder swaagat putr-vadhu ka....upar se sone pe suhaga ye Dr Gupt ji ki 4 panktiyaan....is tarah se koi apnayega to putr vadhu putri hi hokar reh jayegi.....<br /><br />agar aapne waqayi mein kisi ke liye ye panktiyan likhin hongi...to main soch sakti hoon..unke chehre par kitni nishchint aur chittakarshak muskaan khil uthi hogi......<br /><br />bhavishya mein aavashyakta hui to ye shabd aapse udhar loongi.....:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-62104847708458377272011-01-26T11:01:25.155-08:002011-01-26T11:01:25.155-08:00ये पहली रचना है प्रतिभा जी...जो मुझे बिलकुल समझ नह...ये पहली रचना है प्रतिभा जी...जो मुझे बिलकुल समझ नहीं आई.....:( ...बहत्तर कुंवारियां...:(<br /><br />और.....<br />''सैकड़ों की मौत बने हमारे शरीर के चाहे चीथड़े उड़ जायें ,''<br />इस पंक्ति से लग रहा है ''जेहाद'' की आड़ में आतंकी गतिविधियों से सम्बंधित आत्मघाती हमले वाली बात कही गयी है।<br /><br />जी...विनती है अगर आपके पास कुछ समय हो तो कृपया कविता के भाव मुझे बहुत संक्षिप्त में बता सकें...तो...अच्छा रहेगा।Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-64422257708437371622011-01-26T10:54:26.351-08:002011-01-26T10:54:26.351-08:00बहुत सुंदर सीधा सरल प्रवाहमय गीत....
''पग...बहुत सुंदर सीधा सरल प्रवाहमय गीत....<br /><br />''पग की गति हो नये पथिक को नयी प्रेरणा की निर्मात्री !''Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-80208452401567810212011-01-26T10:42:51.221-08:002011-01-26T10:42:51.221-08:00कविता की हर पंक्ति में हर बार एक नया अभाव पाया...&...कविता की हर पंक्ति में हर बार एक नया अभाव पाया...'अभाव' भी नहीं कहा जा सकता...koi dukh ya peeda bhi nahin......kya kahoon :(..??<br />jaise ek ped hota hai..jiska ruaan ruaan parhit k liye hota hai....magar us vriksh ko bhi paani ki poshan ki prem ki aavashyakta to hoti hi hai...aapke har chhand mein.....aise hi vriksh hain......aur har chhand ke ant mein aapka hriday shabdon mein us vriksh ko uske hisse ka ni:swarth prem adhikarswaroop pradaan kar raha hai............:) waise is tarah ke ek vishay par ye ped ko poshit karne wali baat shayad Avinash ne hi mujhe kahi thi......mujhe uchit shabd nahin mile aapki kavita hetu...somain uske shabd yahan dohra diye...<br /><br />haan aapki bahut pravaah mayi kavtaon ke galiyaare se guzarkar is rachna tak aayi...so kahin kahin pravaah zaroor avruddh mehsoos hua..khatkaa....magar bhaav itne prabal the..k sab balance ho gaya.....<br /><br />aapne jis bhaav se ye kavita likhi.......us bhaav ko naman aur aapko aabhar...Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-35635443021635020162011-01-26T10:08:43.374-08:002011-01-26T10:08:43.374-08:00wowwww....bahut pyaari si kavita hai.....kavita ka...wowwww....bahut pyaari si kavita hai.....kavita ka pehle doosre chhand ankhon ke aage ek shishu le aaye....jiski aankhein jeewan se bhari thin aur muththi sakht bhinchi huin......<br /><br />जीवन को पढ़ने का ,मगन मन गढ़ने का ,<br />आगत को रचने के स्वर्णिम क्षण जीने का ,<br /><br />bahut baar padha in pankityon ko...achhi lazzat thi inki..khaskar doosri wali line ki...Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-82832758328154150342011-01-26T04:04:31.323-08:002011-01-26T04:04:31.323-08:00इसके आगे कोरा छलावा .
विकृत सामंजस्यहीन ,
दुराव-...इसके आगे कोरा छलावा . <br />विकृत सामंजस्यहीन , <br />दुराव-छिपाव का ग्रहण , <br />शंकाओं का जागरण <br />क्योंकि अस्लिसत <br />सिर्फ़ मन जानता है , <br />कोई जान सकता भी नहीं. <br /><br />...........true !<br /><br />निर्णय सिर्फ अपना , <br />धिक्कारे कोई कितना , <br />क्या फ़र्क पड़ेगा <br />हो जाये विमुख दुनिया , <br />न मिले प्रशंसा , <br /><br />...<br /><br /><br />जब सौदा नहीं कर सके मन , <br />चला आये चुपचाप . <br /><br />.......<br /><br />न मिले . <br />बस,आत्मबल साथ रहे , <br />अपने आगे ही <br /> सिर तो नहीं झुके ! <br />.......<br /><br />दुख होगा , <br />बीत जाएगा धीरे-धीरे , <br />बस मेरा 'मैं' . <br />प्रखर -चैतन्य मय रहे <br />...............<br /> <br />साथ कोई हो या नहीं ,<br />अश्रु-धुले स्वच्छ अंतःकरण से दुर्लभ, <br />और भी कुछ है क्या ? <br /><br />waaqayi! isse durlabh aur kya ho sakta hai....<br /><br />bahut achha laga ye chitran..yun laga jaise kisi gehre asmanjas bhari paristhiti mein hriday ne sahi aur galat ke kshitij ke paar apnaa ek kadam dheeme se magar vishwaas k sath aage badhaya ho.......<br /><br />bahut badhayi Pratibha ji....is rachna ke liye.Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-3339470909772733002011-01-10T18:44:50.099-08:002011-01-10T18:44:50.099-08:00माँ भारती की यह तो व्यथा कथा हैमाँ भारती की यह तो व्यथा कथा हैM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-54934613882669536022010-12-28T09:51:48.270-08:002010-12-28T09:51:48.270-08:00बीते बरस को नमन ...बहुत सुन्दर भावबीते बरस को नमन ...बहुत सुन्दर भावसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-55050157680410246442010-12-28T05:17:19.622-08:002010-12-28T05:17:19.622-08:00बहुत ही सुंदर पंक्तियां हैं प्रतिभा जी
मेरा नया ...बहुत ही सुंदर पंक्तियां हैं प्रतिभा जी <br /><br /><a href="http://blog.ajaykumarjha.com/" rel="nofollow">मेरा नया ठिकाना</a>अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-43097139329579513552010-12-28T04:34:33.821-08:002010-12-28T04:34:33.821-08:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-12272285684593098562010-12-28T01:30:34.263-08:002010-12-28T01:30:34.263-08:00नमन!
बरस को जो बीत गया.
नमन!
आपकी लेखनी को जी गतिम...नमन!<br />बरस को जो बीत गया.<br />नमन!<br />आपकी लेखनी को जी गतिमान है...<br />वीणा की धुन है इस छंद में.Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-55561677926109208752010-12-10T21:01:21.403-08:002010-12-10T21:01:21.403-08:00मैं हर बार हर जगह देर से ही पहुँचता हूँ, क्षमा करे...मैं हर बार हर जगह देर से ही पहुँचता हूँ, क्षमा करें.<br />यहाँ कुछ कहने योग्य नहीं मैं... मुग्ध मुदित होना उचित है...<br />आभार जो आप ऐसा लिखती हैं...Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-35017342080033385232010-11-11T15:44:51.015-08:002010-11-11T15:44:51.015-08:00अच्छी और सार्थक कविता।अच्छी और सार्थक कविता।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7110775661533879329.post-63558007353222636992010-10-19T02:32:23.767-07:002010-10-19T02:32:23.767-07:00एक अच्छी कविताएक अच्छी कविताRAVINDRAhttps://www.blogger.com/profile/00548791259566393852noreply@blogger.com