सच कहा कि साँस लिये जाती खींचे जीवन .
मन का विस्तृत आकाश
कभी छा लेता घिर बदला मौसम .
बादल-बूँदें छाया कुहास ,
आँधियाँ ,हवायें धूल भरी ,
ये सब आने-जाने वाले ,
फिर थिर हो उजला व्यापक मन.
विस्तृताकाश बन महानील
ढँक लेता भाव-अभाव ,चुभन ,
सीमित सहने की शक्ति बंधु,
है क्षम्य यहाँ क्षण की विचलन !
*
बिजलियां चमक लें
गरज-तरज बरसें बादल ,
छिप जायें सूरज-चाँद-सितारे-दिशा बोध ,
उच्छ्वसित पवन का वेग ,सजल आवेग
कहाँ तक ठहरेगा .
भरमा ले थोड़ी देर ,
हटा कर संयम के अवरोध,
प्रकृति कर ले नियमन .
फिर स्वच्छ ,सुशान्त गगन सा
मन दर्पन-दर्पन !
*
शनिवार, 12 दिसंबर 2009
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बहुत खूब।
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