शनिवार, 2 जनवरी 2010

एक जनम

मुक्ति नहीं,
एक जनम ,
मगन मगन !
*
तन्मय विशेष
कुछ न शेष
पूर्ण लीन
मात्र अनुरक्ति
हो असीम तृप्ति
सिक्त मन-गगन
एक जनम ,
*
धरा हो ऋतंभरा ,
जीवन संतृप्ति भरा
तन ,मन विभोर
निरखें दृग कोर ,
मेघ वन सघन .
एक जनम
*
मुक्ति नहीं,
हो अनन्त राग ,
विरहित विराग
लहर-लहर दीप ,
सिहर-सिहर प्रीत
नृत्यरत किरन
एक जनम
*
भर-पुरे अस्त उदय
भाव-भेद शमित,
परम तोष
शमित ताप
स्निग्ध दीप्तिमय गगन.
एक जनम ,
*
मुक्ति नहीं ,
परम परिपूर्ण मगन,
लघु भले कि लघुत्तम
एक जनम.
जनम-जनम की मिटे थकन
एक जनम .

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