शनिवार, 7 अगस्त 2010

सूरज देर से निकला -

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आज सूरज
रोज से कुछ देर से निकला !
लो ,तुम्हारी हो गई सच बात ,
सूरज देर से निकला !
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कुछ लगा ऐसा कि लम्बी हो गई है रात !
 और रुक सी गई ,
तारों की चढी बारात .
धीमी पड गई चलती हुई हर साँस
सूरज देर से निकला !
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घडी धीरे चल रही ,
कुछ सोचता सा काल
धर रहा है धरा पर हर पग सम्हाल-सम्हाल !
बँधा किसकी बाँह में आकाश ,
सूरज देर से निकला !
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अर्ध-निद्रा या कि सपनों की कुहक- माया
नेह भीगे  मृदुल स्वर लोरी सुनाते थे ,
अनसुने से गीत
रह-रह गूँज जाते थे !
हर नियम अलसा गया है आज
सूरज देर से निकला !
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देर तक अपना मुझे
टेरा किया कोई !
लगा सारी रात मैं
बिल्कुल नहीं सोई !
फिर कुहासा दृष्टि को बाँधे रहा ऐसा,
कि सूरज देर से निकला !
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