बुधवार, 13 जनवरी 2010

ले चलो उन निर्जनों में

आज माँझी ले चलो उन निर्जनों में ,
किसी पग की चाप से आगे वनों में
ले चलो उस तट बिना पहचानवाले ,
जहां कोई आ नहीं पाये पता ले
*
जिस जगह ,संध्या-सुबह चुपचाप आयें ,
रात्रियाँ आ मौन ही फिर लौट जायें ,
जहाँ कोई प्रश्न उठ पाये न आगे ,
जिस जगह ,बस मौन का ही राग जागे
*
चलो अब कुछ काल वहीं व्यतीत कर लें
यहँ से कुछ भी बताये बिन निकल लें
दूर इतनी यहाँ की किरणे न आयें
यहाँ की यादें वहाँ तक जा न पायें
*
पार सबको कर चलो ऐसी दिशा में ,
इन तटों से दूर हो कुछ दिन बिताने
ले चलो उस ओर कोई द्वीप होगा ,
वहाँ से आकाश बहुत समीप होगा .
*
चलो मेरे साथ चाहे लौट आना ,
यहँ से बस कर चलो कोई बहाना
ले चलो उन दूरियों तक जहां कोई भी न जाये
या कि उन गहराइयों में जहाँ कोई डूब जाये
*
चलो माँझी उघर के शीतल घनों में
आज माँझी ले चलो उन निर्जनों में .
*

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