*
बहुत दिन हो गए
नदिया बड़ी संयत रही है .
लहर के जाल में सब-कुछ समाए जा रही है .
कहीं कुछ शेष बचता ,जमा बैठा जो तलों में .
बहुत दिन से न जागा वेग
मंथर वह रही बस
प्रवाहित मौन सी चुपचाप धारा ,
समेटे जाल सारे, डुबोए जल में समाए .
कहीं बरसा न पानी ,हिम-शिखर पिघला न कोई
उमड़ने दो बहुत दिन हो गए हैं ,
समेटे क्यों नहीं पथ के विरोधों को,
सभी कुछ छोड़ बढ़ जाए
कहीं आगे .
कगारें तोड़ कर लहरे समेंटें सब करें प्लावित
बहुत दिन हो गए ,
सभी कुछ देखते- रहते ,
बहुतदिन हो गए ,यों एक सा बहते ,
कहीं जो बाढ़ पानी में उमड़ आए .
*
नदी को बाँधना मत ,
रोकना मत ,शाप है जल का
बहुत कुछ तोड़ जाएगा ,
सभी कुछ टूट बिखरे कुछ न छोड़ेगा ..बहा देगा
तभी फिर देखना तटबंध सारे तोड़ते ढहते .
कि हाहाकार के स्वर वेग में बहते
लगे प्रतिबंध सारे मोड़ते अपनी तरह
बस एक झटके से
कगारों के बिना बढती नदी के वेग को चढते ,
प्रलय का रूप धरने से कहो फिर कौन टोकेगा
किसीमें दम कि चढ़ते पानियों का वेग रोकेगा
किसी में दम उफनती बाढ़ का आवेग रोकेगा .
बहुत दिन हो गए .
*
बहुत दिन हो गए
चुपचाप है ,बहती हुई भी शान्त संयत सी ,
कि गहरी घूर्णियों में घट रहा क्या कौन सोचेगा!
बहुत दिन हो गए ये तट नहीं भीगे
लहर कोई बहा दे रेत के डूहे ,
बराबर कर सतह इकसार कर डाले ,
तलों में जमी तलछट फिर निकल कर भूमि पर छाए ,
जिन्हें कर चूर बिखराया विरोधों को ,
सभी कुछ छोड़ बढ़ जाए कि
कि वर्जित सीढ़ियाँ चढ़ते ,ढहाते पुल
बढ़ी आगे चली जाए
कि पानी ,ढूँढ लेता राह अपनी
तोड़ बाधाएँ .
*
नदी के पाट मत देखो
नदी के घाट मत रोको
बहेगी मुक्त हो प्रतिबंध तोड़ेगी ,
प्रवाहों मे बहाती हरहराती ,कुछ न छोड़ेगी .
अगर फिर तुल गई,
रुख धार मोड़ेगी
युगों के बाद उन रीते कछारों को कभी देखो ,
कभी नदिया रहे ,
गहरे कगारों को जभी देखो
किसी अन्याय का प्रतिफल समझ लेना ,
नदी को दोष मत देना.
*
अभी तो शान्त बहने दो ,
तरल जल स्वच्छ रहने हो ,
अनादर और मनमानी नहीं सह पायगी नदिया
अगर समझो इशारों में बहुत कह जायगी नदिया .
समुन्दर की तरफ हर राह नदिया की ,
रुकेगी क्यों ?
बनाती रास्ता बढ़ जायगी नदिया.
बहुत दिन हो गए .
*
बहुत दिन हो गए
नदिया बड़ी संयत रही है .
लहर के जाल में सब-कुछ समाए जा रही है .
कहीं कुछ शेष बचता ,जमा बैठा जो तलों में .
बहुत दिन से न जागा वेग
मंथर वह रही बस
प्रवाहित मौन सी चुपचाप धारा ,
समेटे जाल सारे, डुबोए जल में समाए .
कहीं बरसा न पानी ,हिम-शिखर पिघला न कोई
उमड़ने दो बहुत दिन हो गए हैं ,
समेटे क्यों नहीं पथ के विरोधों को,
सभी कुछ छोड़ बढ़ जाए
कहीं आगे .
कगारें तोड़ कर लहरे समेंटें सब करें प्लावित
बहुत दिन हो गए ,
सभी कुछ देखते- रहते ,
बहुतदिन हो गए ,यों एक सा बहते ,
कहीं जो बाढ़ पानी में उमड़ आए .
*
नदी को बाँधना मत ,
रोकना मत ,शाप है जल का
बहुत कुछ तोड़ जाएगा ,
सभी कुछ टूट बिखरे कुछ न छोड़ेगा ..बहा देगा
तभी फिर देखना तटबंध सारे तोड़ते ढहते .
कि हाहाकार के स्वर वेग में बहते
लगे प्रतिबंध सारे मोड़ते अपनी तरह
बस एक झटके से
कगारों के बिना बढती नदी के वेग को चढते ,
प्रलय का रूप धरने से कहो फिर कौन टोकेगा
किसीमें दम कि चढ़ते पानियों का वेग रोकेगा
किसी में दम उफनती बाढ़ का आवेग रोकेगा .
बहुत दिन हो गए .
*
बहुत दिन हो गए
चुपचाप है ,बहती हुई भी शान्त संयत सी ,
कि गहरी घूर्णियों में घट रहा क्या कौन सोचेगा!
बहुत दिन हो गए ये तट नहीं भीगे
लहर कोई बहा दे रेत के डूहे ,
बराबर कर सतह इकसार कर डाले ,
तलों में जमी तलछट फिर निकल कर भूमि पर छाए ,
जिन्हें कर चूर बिखराया विरोधों को ,
सभी कुछ छोड़ बढ़ जाए कि
कि वर्जित सीढ़ियाँ चढ़ते ,ढहाते पुल
बढ़ी आगे चली जाए
कि पानी ,ढूँढ लेता राह अपनी
तोड़ बाधाएँ .
*
नदी के पाट मत देखो
नदी के घाट मत रोको
बहेगी मुक्त हो प्रतिबंध तोड़ेगी ,
प्रवाहों मे बहाती हरहराती ,कुछ न छोड़ेगी .
अगर फिर तुल गई,
रुख धार मोड़ेगी
युगों के बाद उन रीते कछारों को कभी देखो ,
कभी नदिया रहे ,
गहरे कगारों को जभी देखो
किसी अन्याय का प्रतिफल समझ लेना ,
नदी को दोष मत देना.
*
अभी तो शान्त बहने दो ,
तरल जल स्वच्छ रहने हो ,
अनादर और मनमानी नहीं सह पायगी नदिया
अगर समझो इशारों में बहुत कह जायगी नदिया .
समुन्दर की तरफ हर राह नदिया की ,
रुकेगी क्यों ?
बनाती रास्ता बढ़ जायगी नदिया.
बहुत दिन हो गए .
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