गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

चरैवेति'

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यह संस्कृति का वट-वृक्ष पुरातन-चिरनूतन
कह 'चरैवेति' जो सतत खोजता नए सत्य
जड़ का विस्तार सुदूर माटियों को जोड़े
निर्मल ,एकात्म चेतना का जीवन्त उत्स,
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आधार बहुत दृढ़ है कि इसी की शाखाएँ
मिट्टी में रुप कर स्वयं मूल बनती जातीं,
जिसकी छाया में आर्त मनुजता शीतल हो
चिन्ताधारा में नूतन स्वस्ति जगी पाती
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इस ग्रहणशीलता पर संशय न उठे कोई
हर फल में रूप धरे संभावित वृक्ष बीज
वन-सागर पर्वत सहित कुटुंब धरा का हो,
मानवता का आवास द्वीप औ' महाद्वीप !

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