रविवार, 28 फ़रवरी 2010

कितना सुन्दर

कितना सुन्दर है ये जीवन ,मेरे मन !
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घूम के आतीं जो ऋतुओं के साये
पत्ते उड़ाती भागती हवाये ,
कभी बरसात कभी धूप की तपन
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घेरे हुये घरती गगन की बाहें .
चूमती पग-पग बढ़ती हुई राहें
साथ में चले जो कोई हो मगन !
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कहीं कंकरों के दाँव पाँवों तले
नर्म माटी की छुअन भी मिले
कभी हँसी खिले कभी मिले यहां गम !
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चला आता हँसता त्यौहार का मौसम .
पतझर आया आयगा बहार का मौसम
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